Pager-Walkie-talkie Blast in Lebanon: हाल ही में लेबनान में Pager-Walkie-talkie Blast की एक खतरनाक घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस घटना में पेजर और वॉकी-टॉकी में अचानक हुए धमाकों ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। ये धमाके हिज़बुल्ला के लड़ाकों के उपकरणों में हुए थे, जिससे यह संदेह पैदा हुआ है कि इसके पीछे इजराइल हो सकता है। पर असली सवाल यह है कि कैसे किसी दूर बैठे व्यक्ति ने इन उपकरणों में धमाका कराया? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम पहुँचे रेडियो फ्रीक्वेंसी और साइबर विशेषज्ञ अंकुर पुराण के पास, जिन्होंने इस पर विस्तार से चर्चा की।
धमाकों का तरीका: कैसे हुआ Pager-Walkie-talkie Blast?
विशेषज्ञ अंकुर पुराण के अनुसार, इन धमाकों के पीछे दो प्रमुख तरीके हो सकते हैं। पहला तरीका यह है कि बैटरी को ओवरहीट किया जाए, जिससे धमाका हो सकता है। दूसरे तरीके में वॉकी-टॉकी के अंदर विस्फोटक लगाया जा सकता है। Pager-Walkie-talkie Blast in Lebanon की इस घटना में भी यही हुआ था।
कैसे हुआ यह धमाका?
विस्फोटक उपकरण के अंदर प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (PCB) पर लगाया जाता है। यह मैन्युफैक्चरिंग के दौरान या फिर ट्रांजिट के समय उपकरण में सेट किया जा सकता है। इसके अलावा, जब उपकरण मेंटेनेंस के लिए खोला जाता है, उस समय भी विस्फोटक लगाना संभव है।
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वॉकी-टॉकी की कार्यप्रणाली
वॉकी-टॉकी विशेष फ्रीक्वेंसी पर काम करती हैं। ये फ्रीक्वेंसी जैसे DCS (Digital Coded Squelch) और CTCSS (Continuous Tone-Coded Squelch System) का इस्तेमाल करके एक सुरक्षित संचार प्रणाली स्थापित करती हैं। किसी भी Pager-Walkie-talkie Blast में, अगर कोई विशेष कोड ट्रांसमिट किया जाए, तो यह उपकरण को एक्टिवेट कर सकता है और विस्फोट हो सकता है।
सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती
इन विस्फोटों ने सुरक्षा एजेंसियों के लिए गंभीर चिंता पैदा कर दी है। उपकरणों का इस तरह दुरुपयोग आसानी से किया जा सकता है, और इसका दुष्परिणाम बहुत ही खतरनाक हो सकता है। Pager-Walkie-talkie Blast in Lebanon की यह घटना दिखाती है कि तकनीक का दुरुपयोग कितनी आसानी से किया जा सकता है और इससे कितनी बड़ी क्षति हो सकती है।
खतरे का आकलन
उपकरणों में माइक्रो-स्केल पर विस्फोटक लगाकर इसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि इन उपकरणों का उपयोग सैन्य और अन्य सुरक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है। अगर इसमें कोई भी विस्फोटक पहले से सेट किया गया हो, तो यह भविष्य में खतरनाक हो सकता है।
विस्फोट की तकनीकी प्रक्रिया
डेमो के अनुसार, जब कोई विशेष कोड वॉकी-टॉकी के माध्यम से ट्रांसमिट किया जाता है, तो यह डिवाइस को एक्टिवेट कर देता है। इसके बाद यह डिवाइस डेटोनेटर को ट्रिगर करता है, जिससे विस्फोट हो जाता है। लेबनान की इस घटना में, Pager-Walkie-talkie Blast को इसी तरह अंजाम दिया गया था। यह प्रक्रिया देखने में भले ही आसान लगे, लेकिन यह बेहद खतरनाक है।
नॉर्मल ऑपरेशन और धमाका
यह दिलचस्प है कि जब तक सही कोड ट्रांसमिट नहीं किया जाता, उपकरण सामान्य रूप से काम करता रहता है। विशेषज्ञ ने यह भी बताया कि कैसे वॉकी-टॉकी का सामान्य संचार तब तक जारी रहता है जब तक सही कोड नहीं भेजा जाता। जैसे ही वह कोड भेजा जाता है, उपकरण तुरंत विस्फोट कर देता है। यही तकनीक लेबनान के मामले में भी इस्तेमाल की गई।
लेबनान में हुआ Pager-Walkie-talkie Blast एक गंभीर सुरक्षा चुनौती है। इस घटना ने यह दिखाया है कि आज के युग में तकनीकी विस्फोटों का दुरुपयोग किस हद तक हो सकता है। मैन्युफैक्चरिंग और ट्रांजिट स्तर पर किए गए ऐसे हमलों को रोकने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को और सतर्क रहना होगा।
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